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इण जिवड़े रै कारणे
इण जिवड़े रै कारणे, हरि हर नांव चितारे।ओ धन तो है ढळती छाया, ज्यूं धूवैं री धारे।
जसनाथ
पूरै गुरु री आलंग कर प्राणी
तेल्यां रै घर हुवै बळदियो, घाणी बहंता आर पड़ै।डूमां रे घर हुवै घोड़लो, खूंटै बांध्यो भूख मरै।
जसनाथ
जिय की साध जिय ही रही री
जिय की साध जिय ही रही री।बहुरि गोपाल देखन न पाए बिलपति कुंज अहीरी॥
परमानंद दास
कोई दिलवर की डगर बता दे रे
कोई दिलवर की डगर बता दे रे।लोचन कंज कुटिल भृकुटि कच, काननन कथा सुना दे रे॥
ललितकिशोरी
लघु गुरु समझ धर रे
लघु गुरु समझ धर रे, ज्यौं कहे ग्रंथन गुरुन प्रमान।जेही लघु तेही गुरु, लघु गुरु विवेक अक्षर लख,
गोपाल
तोको पीव मिलैंगे घूँघट के पट खोल रे
तोको पीव मिलैंगे घूँघट के पट खोल रे।घट घट में वही साँई रमता, कटुक बचन मत बोल रे।
कबीर
मैया री मैं गाय चरावन जैहौं
बंसीबट की सीतल छैयां खेलत मैं सुख पैहौं।परमानंद प्रभु तृसा लगे पै जमुना जलहि अचैहों॥
परमानंद दास
सुण रे क़ाज़ी सुण रे मुल्ला
सुण रे क़ाज़ी सुण रे मुल्ला, सुणियो लोग लुगाई।नर निरहारी एकलवाई, जिन यो रा फरमाई॥
जांभोजी
पीव घरि आवे रे
पीव घरि आवे रे बेदन माह्नी जांणी रे।बिरह संतापै कवण परि कीजै कहूँ छूँ दुखनीं कहांणी रे॥